क्या वो एक वेश्या थी ? (भाग-1) Shiv Shanker Gahlot द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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क्या वो एक वेश्या थी ? (भाग-1)

नवीन दत्ता अपने दोस्त और मातहत काम करने वाले शान्ति दास के साथ बस से शाहदरा पहुंचा । दोनों गली तेलियान मे पहुंचकर कमल सरीन का मकान ढूंढने लगे । ये बेहद संकरी सी गली थी और हर दूसरे तीसरे घर मे दुकान खुली थी । दुकानदारों ने जहां तहां एन्क्रोचमेंट कर रखी थी । गली के अन्दर कुछ दूर सरीन का मकान मिल गया । ये मकान गली के दूसरे मकानों से कुछ बड़ा था । देखते ही पता चलता था कि रहने वाले सम्पन्न हैं । निर्माण और सजावट पर काफी पैसा लगाया गया था । लकड़ी के दरवाजे आधुनिक डिजाइन के बने थे जिन पर बेहतरीन डिजाइन के ही सुनहरे कुंडे और हैंडल लगे थे । वायदे के मुताबिक सरीन घर पर ही था और दरवाजे की घंटी बजाने पर उसने खुद आकर दोनों का स्वागत किया और दोनों को लेकर ऊपर वाली मंजिल पर बने कमरे मे ले गया । कमरे मे बेहतरीन अपहोल्स्टरी वाला सोफा सैट डला था और वाइन कलर की सैन्टर टेबल थी जिस पर लगा मोटे काले ग्लास का टॉप बड़ा सुन्दर दिखता था । टेबल को खिसका कर आगे पीछे करने को चारों पायों मे पहिये कुछ इस तरह लगे के जो बाहर से स्टील के ठोस गोले जैसे दिखते थे ।


सरीन ने पहुंचते ही जोर से आवाज़ लगायी ।


“राम काजी! बेटा”- एक दुबला पतला सा लड़का जिसकी आंखें चपल थीं तुरन्त हाजिर हो गया ।


“बेटा ! त्यारी करो” - सरीन बोला ।


राम काजी सब समझता था और पहले पानी के ग्लास लेकर आया और टेबल पर रखकर चला गया । सरीन ने बिना किसी फॉरमलिटी के सामने रखी रैक से मैक्डॉवल की बोतल और मंहगे फ्रैंच कट ग्लास निकाल कर सैन्टर टेबल पर रख दिये । बोतल खुली हुई थी और थोड़ी खाली थी । सरीन ने रामकाजी को नमकीन, सोडा और पानी का जग लाने नीचे भेज दिया । पीने पिलाने का दौर शुरु हुआ तो सुरूर चढ़ने लगा । धीरे धीरे तीन चार पैग हो गये तो नशा बढ़ता चला गया । नशे की हालत मे पीने वाले की मनोवृत्ति हो जाती है कि कहीं नशा उतर न जाये तो ओर पीता जाता है । सरीन तो अपने घर पर था और अच्छे खासे नशे मे था पर नवीन और शान्ति पीते जा रहे थे और बोतल खाली हो गयी । नशा ज्यादा था । नवीन ने सरीन को बोला:


"सरीन! बोतल और मंगाओ” ।


समय ज्यादा हो चुका था और ठेके बन्द हो चुके थे । सरीन ने एक दो जगह अपने यार दोस्त के यहां फोन लगाया पर कुछ इंंतजाम न हो सका । नवीन और शांति दोनों बिना बात ही तैश मे आ गये और सरीन को उलटा सीधा बोलने लगे । उनके व्यवहार से सरीन को गुस्सा तो बहुत आ रहा था पर वो घर पर बुलाये हुए मेहमान थे तो चुप रहा । नवीन और शांति दोनों गाली गुफ्तार पर उतर आये और सरीन की बहुत बेइज्जती की ।


“दारू पिलाने को बुलाया और दारू का इंतजाम भी ठीक से नहीं किया । अपने आपको पता नहीं क्या समझता है और घर मे एक बोतल भी ना निकली । कंगला कहीं का” - न जाने क्या क्या कहकर दोनों वहां से रुखसत हो गये ।


बात आयी गयी हो गयी । पर सरीन भूला नहीं था । एक दिन वो गाड़ी मे बोतल डालकर नवीन और शांति के पास पहुंच गया । दोनों को गाड़ी मे बुलाकर बोतल खोल ली और पीना चालू हो गये । गाड़ी मे बैठ कर पीना पिलाना दिल्ली शहर मे आम है । नमकीन, चाट की टिक्की, चिकन टिक्के और सींख कबाब के साथ गाड़ी मे बैठे वो तीनों दो घंटे तक पीते रहे । बोतल खत्म हुई तो नवीन और शांति उठ कर चलने को तैयार हुए पर ये क्या । सरीन ने दूसरी बोतल खोल ली और एक एक पैग और पीने का आग्रह किया । खैर देखते देखते दूसरी बोतल भी आधी खाली हो गयी । तभी सरीन का दोस्त सरदार सलूजा भी आ पहुंचा । सरीन ने सलूजा को भी एक पटियाला पैग बना कर दिया । सलूजा गटागट पी गया । समय काफी हो गया था जिसे वो कवर करके जल्दी नशा करने के चक्कर मे था । नवीन और शांति को इतनी चढ़ गयी थी कि आंखे नहीं खुल रहीं थी और सब कुछ ख्वाब सा नजर आ रहा था । उन्होंने शुक्र मनाया कि सलुजा आ गया था तो ओर पीने से उनकी जान छूट गयी थी । जल्दी ही बोतल खत्म हो गयी तो सरीन गाड़ी को चलाकर “चाचे दा ढाबा” नाम के होटल पर ले गया । ये एक बिल्कुल छोटा सा ढाबा था जो शहर की मुख्य मार्किट मे था और अपने नॉन वैज खाने के लिये शहर मे मशहूर था । अन्दर जाकर टेबल पर बैठे और सरीन ने बटर चिकन और नॉन का आर्डर दिया । सलूजा और सरीन दोनों नॉन वैज के शौकीन थे और रैगुलर खाने वाले थे । नवीन और शांति तो बस यूं समझिए कि नॉन वैज खा लेते थे पर शौकीन नहीं थे । नवीन जब चिकन के एक लैग पीस को खाने मे उलझ रहा था तब तक सलूजा एक फुल बटर चिकन खा कर दूसरा खाना शुरू कर रहा था । नवीन इतना नशे मे था कि नॉन के टुकड़े को तरी मे डुबोकर खाने के लिये मुंह तक ले जाता था तो हाथ दांतो मे थड से जा टकराता था । हाथों के मूवमेंट पर नियंत्रण नहीं रह गया था । शांति का भी नशे से बुरा हाल था और उससे कुछ भी खाया नहीं जा रहा था । खाने से जैसे तैसे निबट कर चारों बाहर आये जहां सरीन की गाड़ी थी । सलूजा सरीन के घर की तरफ ही रहता था इसलिये सलूजा और सरीन दोनों एक साथ गाड़ी मे चले गये । नवीन दूर रहता था और इतनी रात को घर जाना मुश्किल था । शांति का घर ज्यादा दूर नहीं था तो उसी के घर जाकर रात को रुकना तय हुआ । दोनों ऑटो स्टैंड की तरफ निकल पड़े । घर पहुंचते पहुंचते रात के बारह बज गये थे । जा कर दोनों कमरे मे सो गये । ये जगह चालनुमा घर मे थी जिसमे ऊपर नीचे कई परिवार अलग अलग हिस्सों मे कई फ्लोर पर रहते थे । शांति के परिवार मे दो बहने और मां थे । मां और दोनों बहनें एक फ्लोर ऊपर के कमरे मे रहते थे जिसके साथ किचन भी थी । नीचे के कमरे के साथ स्टोर भी था ।


सुबह देर तक दोनों सोये रहे और जब उठे तब जाकर रात की हालत का अहसास हुआ । उन्हें इतनी पिलायी गयी थी कि वो होश खो बैठे । पहली बार ऐसा हुआ था कि नवीन घर नहीं जा पाया था । उसे बहुत बुरा लग रहा था । शांति के घर वाले तो उसकी आदतों के अभ्यस्त हो गये थे । बुरा तो बहुत लगता था पर कुछ कहते नहीं थे । आखिर तो शांति घर मे अकेला मर्द था । पिताजी तो पन्द्रह साल पहले ही स्वर्गवासी हो चुके थे । मां ने ही पांच बच्चों को पाला था । दो बहनों की पहले ही शादी हो चुकी थी ।


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